EducationHealthCovid-19Job Alert
Uttarakhand | Tehri GarhwalRudraprayagPithoragarhPauri GarhwalHaridwarChampawatChamoliUdham Singh NagarUttarkashi
AccidentCrimeUttar PradeshHome

अल्मोड़ा: ...तो सांस्कृतिक शहर में स्थानाभाव बनेगा मेलों/महोत्सवों में रोड़ा!

09:03 PM Aug 31, 2024 IST | CNE DESK
Advertisement

✍️ विवाद जैसी स्थितियों से सिमट जाएंगी सांस्कृतिक परंपराएं
✍️ सभी को आपसी समन्वय से समस्या का हल तलाशना जरुरी

Advertisement

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा

Advertisement

यूं तो वर्षभर अल्मोड़ा नगर में सांस्कृतिक गतिविधियां चलते रहती हैं। यहां का दशहरा महोत्सव हो या ऐतिहासिक नंदादेवी महोत्सव। ये पूरे देश में विशिष्ट पहचान रखते हैं। वहीं अल्मोड़ा की होली गायन परंपरा भी शहर की सांस्कृतिक परंपरा पर चार चांद लगाती है। संस्कृति से ओतप्रोत इस शहर के सांस्कृतिक दल देश के विभिन्न प्रांतों में जाकर अपनी संस्कृति की अमिट छाप छोड़ते आ रहे हैं। यही वजह है अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी अथवा कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी के नाम से जाना जाता है। ऐसे में सांस्कृतिक शहर की सांस्कृतिक संरक्षण की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। मगर इस दफा पहली बार अल्मोड़ा शहर में नंदादेवी महोत्सव व कुमाऊं महोत्सव के लिए स्थान की उपलब्धता का प्रश्न खड़ा हुआ है, जिसे अफसोसजनक ही कहा जा सकता है। जो विवाद खड़ा हुआ है, उससे शहर में भविष्य में होने वाले ऐसे महोत्सवों/बड़े आयोजनों पर सवालिया निशान लग गया है।

प्रदेश सरकार समय—समय पर पर्वतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के दावे करते आ रही है, लेकिन जब अल्मोड़ा के मशहूर ऐतिहासिक व पौराणिक नंदादेवी मेले को भव्य रुप से आयोजित करने के लिए एक अदद मैदान उपलब्ध नहीं है, तो ऐसे में तो ये दावे हवा—हवाई ही कहे जा सकते हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से शहर में विकास के नाम पर ऊंची—ऊंची इमारतें खड़ी हुईं, खेल मैदान बने। जिनकी जरुरत भी है। मगर सांस्कृतिक नगरी में बड़े महोत्सवों व कार्यक्रमों के लिए कोई सुविधाजनक निर्धारित स्थान/मैदान का अभाव आज तक बना ही रह गया। इस ओर सोचा ही नहीं गया, जबकि हर साल नंदादेवी मेला हो, दशहरा महोत्सव हो या इसी तरह के बड़े कार्यक्रम हो, में स्थानाभाव खलते ही आया है। यही वजह है कि नंदादेवी मेले को भव्य रुप देने के लिए पिछले सालों में इसे एडम्स गर्ल्स इंटर कालेज के मैदान तक फैलाया गया। वहीं पिछले वर्षों तक कुमाऊं महोत्सव के लिए जीआईसी अल्मोड़ा का मैदान उपलब्ध होता रहा है। इनके अलावा दशहरा महोत्सव में सांस्कृतिक समारोह के बीच रावण कुल के पुतलों का दहन स्थानीय स्टेडियम में किया जाता है, वहीं पुतलों के जुलूस का उद्घाटन शिखर तिराहे के करीब मुख्य सड़क पर होता आया है। यहां तक राजनैतिक सभाएं के लिए भी विद्यालयों के मैदान ही उपयोग में लाए जाते रहे हैं।

Advertisement

इस बार नई मुश्किल तब खड़ी हो गई। एक ओर कुमाऊं महोत्सव के लिए आयोजकों को जीआईसी का मैदान नहीं मिल सका, तो उन्हें नगर से दूर सिमकनी मैदान में कुमाऊं महोत्सव आयोजित करना पड़ा, वह भी शर्तों पर। दूसरी ओर नंदादेवी मेले को भव्यता प्रदान करने के लिए एडम्स का मैदान उपलब्ध नहीं हो सका है, जिसके लिए नंदादेवी मेला कमेटी ने अनुमति मांगी। ऐसे में वर्तमान में विवाद की स्थिति बनती प्रतीत हो रही है। इससे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि भविष्य में सांस्कृतिक नगर के मेले व बड़े कार्यक्रम कैसे होंगे। आखिर इन मेलों व महोत्सवों के आयोजन के लिए कहां पर्याप्त जगह मिलेगी। अगर पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं हो पाया, तो समझा जा सकता है कि भविष्य में सांस्कृतिक नगर में मेला/महोत्सव के आयोजन पर संकट पैदा हो जाएगा या ये सिमट कर रह जाएंगे। जिसका सीधा असर सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर पड़ेगा। ऐसे में सरकार, जिला प्रशासन, व्यापार मंडल समेत रंगकर्मियों, कलाकारों व सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों को मिल बैठकर इस प्रश्न का उत्तर तो तलाशना चाहिए, ताकि सांस्कृतिक विरासत विवादों की भेंट न चढ़ पाए।
सरकार व जिला प्रशासन निकाले समस्या का हल: मनोज

अल्मोड़ा: नंदादेवी मेले के लिए स्थान को लेकर उत्पन्न विवाद के संबंध में पूछे जाने पर कांग्रेस विधायक मनोज​ तिवारी से कहा कि नंदादेवी मेला पौराणिक मेला है। इसे भव्यता प्रदान करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन की है, ताकि इस ऐतिहासिक मेले को​ विगत वर्षों की भांति संपादित​ किया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार व जिला प्रशासन को इस समस्या का हल निकलना चाहिए। उन्होंने कहा कि गत वर्ष मेले के लिए सरकार द्वारा घोषित धनराशि भी मेला कमेटी को मिलना चाहिए।
सदियों पुराने मेले को मिले भव्य रुप: महरा

Advertisement

अल्मोड़ा: जिले के जागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक मोहन सिंह महरा का कहना है कि नंदादेवी मेले का आयोजन सालों—साल से होता आया है। मेले को भव्य स्वरुप देने के​ लिए शासन व जिला प्रशासन को स्थान उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि हमारी सदियों पुरानी सांस्कृतिक परंपरा कायम रह सके। उन्होंने यह भी कहा कि ​गत वर्ष यदि सरकार की ओर से मेले के लिए घोषित धनराशि को अवमुक्त कराने के लिए वे मुख्यमंत्री से वार्ता करेंगे।

Related News