EducationHealthCovid-19Job Alert
Uttarakhand | Tehri GarhwalRudraprayagPithoragarhPauri GarhwalHaridwarChampawatChamoliUdham Singh NagarUttarkashi
AccidentCrimeUttar PradeshHome

राम मंदिर समारोह का निमंत्रण ठुकराना कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल !

03:40 PM Jan 11, 2024 IST | CNE DESK
राम मंदिर समारोह का निमंत्रण ठुकराना कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल
Advertisement

📌 हिंदू विरोधी छवि से होगा बड़ा नुकसान, रही—सही उम्मीद भी चौपट

✒️ स्वयं कांग्रेस के ही कई नेता कर रहे विरोध

CNE DESK/कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने अयोध्या में राम मंदिर भव्य समारोह का निमंत्रण ठुकरा बहुत बड़ी और ऐतिहासिक भूल कर दी है। जिसका खामियाजा न सिर्फ आने वाले लोकसभा चुनाव में दिखाई देगा, बल्कि लंबे समय तक इसकी भरपाई भी संभव नहीं होगा। ऐसा देश के तमाम बड़े राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है।

अयोध्या में 500 सालों के संघर्ष के बाद राम मंदिर निर्माण हुआ। अब प्राण—प्रतिष्ठा समारोह होने जा रहा है। ऐसे में इंडिया गठबंधन में शामिल कई दलों के भड़कावे में आकर कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक भूल कर दी है। तारीखें गवाह हैं कि भारतीय राजनी​ति में कांग्रेस ने कई बार बड़ी भूलें की हैं।

Advertisement

आज दबी जबान बहुत से कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस को आज की तारीख में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनैतिक जीवन का अनुसूरण करना चाहिए। जिन्होंने धर्मनिपरेक्ष के साथ ही हिंदुत्व समर्थक छवि देश के समक्ष उजागर की थी। यहां तक कि शंकराचार्यों की नियुक्ति तक में उनका हस्तक्षेप रहा। हिंदू धर्मगुरुओं से इंदिरा की निकटता रही। वामपंथियों की बड़ी भीड़ के साथ ही हिंदू समर्थित नेताओं के कई चेहरे उनके साथ रहे। जिसका परिणाम यह रहा कि इंदिरा युग में कांग्रेस का मुकाबला भाजपा दूर—दूर तक नहीं कर पाई। भाजपा का सबसे शक्तिशाली संघ जैसा संगठन भी इंदिरा कांग्रेस के आगे कमजोर साबित हुआ। किंतु राजीव गांधी के बाद सोनिया, राहुल की कांग्रेस ने कई बड़ी राजनैतिक गलतियां की। जिसके चलते आज की तारीख में कांग्रेस सत्ता से लगातार दूर होती जा रही है।

22 जनवरी को जाते तो भाजपा की छिछालेदार हो जाती

राजनैतिक विशेषज्ञों का ही नहीं, बल्कि कई कांग्रेसियों का भी यही मानना है कि आज की तारीख में भाजपा जहां हर मंच से कांग्रेस को मुस्लिम परस्त व हिंदू विरोधी साबित करने पर तुली है। वहीं, यदि राम मंदिर समारोह में कांग्रेस दल—बल के साथ अपनी उपस्थिति देती तो यह भाजपा की काफी हद तक राजनैतिक हार होती।

Advertisement

यही तो भाजपा चाहती थी

दरअसल, भाजपा यही चाहती थी कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल राम मंदिर समारोह में आने से इंकार कर दें। जिसका सीधा संदेश देश के समक्ष यही जायेगा कि कांग्रेस व विपक्षी दल हिंदू विरोधी हैं। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार राम मंदिर समारोह को ठुकरा कांग्रेस ने वही भूल की है, जो कभी सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद ठुकरा कर कर दी थी। राहुल गांधी को 2009 में पीएम बनाया जा सकता था, लेकिन कांग्रेस ने तब ऐसा नहीं किया। आज फिर वैसी ही भूल की है। राम मंदिर समारोह को कांग्रेस द्वारा ठुकराया जाना इतिहास के पन्नों में काली स्याही से लिखा जायेगा।

2014 की समीक्षा से भी नहीं लिया सबक

राजनीतिक जानकारों का यही कहना है कि कांग्रेस को वर्तमान राजनीति और परिवर्तन के दौर को समझना होगा। 2014 के बाद देश में बहुत कुछ बदल चुका है। तब आम चुनाव में मिली भारी असफलता के बाद एके एंटनी आयोग ने भी माना था कि कांग्रेस को अब मुस्लिम परस्त राजनीति से बाहर निकलना होगा। राम मंदिर समारोह में शामिल होना एक बड़ा मौका था, जबकि कांग्रेस यह साबित कर देती कि उसकी भी भगवान राम में आस्था है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

Advertisement

जवाहर लाल नेहरु के फैसले का अनुसरण अप्रासंगिक

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने ऐसा फैसला 1951 में तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के फैसले का अनुसरण करते हुए लिया है। तब 11 मई 1951 को सोमनाथ मंदिर में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जाने का नेहरु ने विरोध किया था। समझने वाली बात यह है कि तब नेहरू ने वह फैसला उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर लिया था। जिसके बाद आगामी 3 आम चुनावों में कांग्रेस का परचम लहराया था।

नेहरू बहुत समझदार थे

1951 में देश में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कांग्रेस पार्टी ही करती थी। यह बात नेहरू भी अच्छी तरह जानते थे कि कांग्रेस के सामने जनसंघ कहीं नहीं है। तब नेहरू को कांग्रेस में ही वाम विचारों से प्रभावित लोगों को साधना था। तब देश में कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पार्टियां बहुत मजबूत स्थिति में थी। कांग्रेस पार्टी में भी वामपंथी विचारों वालों वालों की अधिकता थी। यही कारण है तब नेहरू ने सोमनाथ मंदिर में राजेंद्र प्रसाद के जाने का विरोध किया था। किंतु देश के मौजूदा हालात बहुत बदल चुके हैं। देश भर में कम्पयुनिस्ट पार्टियां लगभग खत्म हो चुकी हैं। वाम दल बहुत सीमित क्षेत्रों में हैं। राष्ट्र कट्टर हिंदुत्व पर चलने लगा है। ऐसे समय में राम मंदिर समारोह का निमंत्रण ठुकराना कतई उचित नहीं था।

कांग्रेस में ही हो सकते हैं अंर्तविरोध

राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने के फैसले का कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी विरोध कर सकते हैं। ऐसा होने भी लगा है। गुजरात में कांग्रेस के वर्किंग प्रेसिडेंट अंबरीश डेर, विधायक अर्जुन मोढवाडिया, यूपी कांग्रेस से आचार्य प्रमोद कृष्ण जैसे नेताओं ने पार्टी के फैसले का कड़ा विरोध किया है।

कांग्रेस के भीतर ही कुछ अलग चल रहा

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे और मंत्री विक्रमादित्य सिंह। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे और छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ आदि ने राम मंदिर जाने की बात कही है। वहीं, कर्नाटक में राज्य की कांग्रेस सरकार सरकारी सहायता प्राप्त सभी मंदिरों में 22 जनवरी के दिन विशेष पूजन करवा रही है। गत रविवार को ही कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का कहना था कि उनकी पार्टी समारोह में जरूर शामिल होगी, लेकिन उनकी बात को हाईकमान ने अनसुना कर दिया।

कांग्रेस ने वही किया जो भाजपा का प्लान था

अलबत्ता इतना कहा जा सकता है कि राम मंदिर उद्घाटन को लेकर भाजपा जो चाहती थी उसमें पूरी तरह सफल हुई है। भाजपा ने एक पूरी तय प्लानिंग के तहत ही धीरे-धीरे करके एक—एक करके विपक्षी नेताओं को आमंत्रण भिजवाना शुरू किया था। तब बहुत से लोग कयास लगाते रहे कि उन्हें आमंत्रण मिलेगा या नहीं। आमंत्रण मिलने के बाद तमाम दल राम मंदिर दर्शन जाने की बात कह रहे थे, लेकिन एक—एक कर सबने सुर बदल लिए।

कांग्रेस ने तो राम मंदिर समारोह में जाना है या नहीं कहने में करीब तीन सप्ताह का विक्त ले लिया। अब जब कांग्रेस ने शामिल होने से इंकार कर लिया है तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलना तय है।

Related News