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जानिए जनपद में कितने हैं द्वितीय विश्वयुद्ध पेंशनर्स, कैसे होता है वेरिफिकेशन

11:24 AM Nov 28, 2024 IST | Deepak Manral
कर्नल मनराल ने किया दौरा, पेंशनर विधवाओं की पूछी कुशलक्षेम
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📌 कर्नल मनराल ने किया दौरा, पेंशनर विधवाओं की पूछी कुशलक्षेम

👉 वयोवृद्धों की तकलीफें जान भावुक हुए अधिकारी

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध की कई सैन्य विधवाएं आज भी जीवित हैं और सरकार द्वारा प्रदत्त पेंशन ले रही हैं। इनमें से अधिकांश 90 से 95 वर्ष की आयु में पहुंच चुकी हैं। इनका भौतिक सत्यापन करना अनिवार्य होता है। इस आयुवर्ग की विधवाएं तो किसी किस्म की आधुनिक तकनीकी जानकारी भी नहीं रखतीं और मोबाइल इत्यादि चलाना भी नहीं जानती हैं। अतएव विभागीय स्तर पर इनका पूरे धैर्य के साथ भौतिक सत्यापन किया जाता है।

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दरअसल, जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी अल्मोड़ा कर्नल विजय मनराल ने अपने भ्रमण कार्यक्रम के तहत द्वितीय विश्ववयुद्ध के पेंशनर सैनिकों के घर जाकर उनकी वीर नारियों की कुशलक्षेम पूछी। इस दौरान कर्नल मनराल के साथ 90 से 95 वर्ष के आस—पास आयु वर्ग की आमाओं ने अपने दु:ख—तकलीफों को भी साझा किया।

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कर्नल मनराल ने किया दौरा, पेंशनर विधवाओं की पूछी कुशलक्षेम

उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व​ युद्ध एक सितंबर उन्नीस सौ उन्नचालीस (1 September 1939) से दो सितंबर उन्नीस सौ पैतालीस (2 September 1945) तक चला था। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में वर्तमान में इकत्तीस ऐसी सैन्य विधवाएं हैं, जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध की पेंशन मिलती है। यह भी बताना चाहेंगे कि यह वह ब्रिटिश काल के दौरान की वह नॉन पेंशनर महिलाएं हैं, जिन्हें सरकार द्वारा आज दस हजार प्रतिमाह दिया जाता है। यह पेंशन उन्हें त्रैमासिक दी जाती है, लेकिन उससे पूर्व सैनिक कल्याण की ओर उसे सैन्य विधवाओं का भौतिक सत्यापन अनिवार्य रूप से किया जाता है।

केंद्र व राज्य सरकार द्वारा लागू की गई तमाम योजनाएं

इधर जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल विजय मनराल ने बातचीत में बताया कि वे विभागीय स्तर पर नियमित रूप से दूरस्त ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करते हैं। इस दौरान गांवों व वयोवृद्ध पेंशनररों की समस्याओं से भी अवगत होने का उन्हें मौका मिलता है। कर्नल मनराल ने बताया कि मौजूदा उत्तराखंड सरकार ने पूर्व सैनिकों, वीरांगनाओं व सैन्य विधवाओं के लिए काफी अच्छी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, जिनकी जानकारी विभागीय स्तर पर दी जाती है।

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केंद्रीय सैनिक बोर्ड मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस से संचालित होता है। वहीं हर राज्य में राज्य सैनिक बोर्ड कार्य करता है। जिसकी हर राज्य में अलग—अलग योजनाएं संचालित होती हैं। इन दोनों योजनाओं की ही जानकारी उनके द्वारा दी जाती है। इन योजनाओं की बदौलत विभिन्न अनुदान मिल रहे हैं।

कई किलोमीटर पैदल चल पहुंचे कर्नल मनराल

कर्नल मनराल ने बताया कि बुधवार को वह सैन्य विधवाओं से मिलने उनके दूरस्त ग्रामों पर पहुंचे। जिनकी आयु वर्तमान में 90 वर्ष के आस—पास है। एक विधवा तो ताकुला में 93 साल की भी मिली। बिंसर के निकटवर्ती गांव भी वे वयोवृद्ध सैन्य विधवा से मिले। उन्हें एक गांव में जाने के लिए लगभग आधा घंटा खड़ी चढ़ाई को पैदल भी नापना पड़ा। उक्त विधवा के पति 1942 में सेना में भर्ती हुए थे और चार साल की सेवा के दौरान बर्मा में रहने के बाद वापस घर आ गए थे। तब सेना द्वारा भारतीय सैनिक को सेवाकाल के बाद सीधा घर भेज दिया जाता था और किसी किस्म की पेंशन भी नहीं मिलती थी। ऐसी महिलाओं को World War II widows कहा जाता है। इनके पतियों ने द्वितीय विश्व​ युद्ध में भाग लिया है और चार—पांच साल नौकरी कर घर वापस आ गए थे। किसी मामले में यह फौज में दोबारा भर्ती हो गए और कई मामलों में नहीं भी हुए। ऐसी विधवाओं को उत्तराखंड सरकार दस हजार प्रतिमाह देती है। विभाग 30 हजार इन्हें ​क्वाटरली देता है। कर्नल मनराल ने बताया कि अल्मोड़ा जनपद में 31 द्वितीय विश्वयुद्ध की सैन्य विधवाएं हैं, जिनमें जो जनपद में उनका विभाग द्वारा फिजिकल वेरिफिकेशन होता है। वहीं, बहुत सी सैन्य विधवाएं दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ जैसे महानगरों में रहती हैं। जिनकी ​वीडियो कॉलिंग के द्वारा तथा ग्राम प्रधान के प्रमाण पत्र द्वारा वेरिफिकेशन होता है। गत दिवसी ऐसी तीन विधवाओं का भौतिक सत्यापन हुआ। जिनमें एक मासी व दो ताकुला में रह रही हैं।

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इन द्वितीय विश्वयुद्ध विधवाओं का हुआ भौतिक स्त्यापन

गत दिनों मालती देवी पत्नी धनी राम निवासी मासी, चौखुटिया। कुशुली देवी पत्नी सिपाही हिम्मत सिंह निवासी ग्राम चुराड़ी, ताकुला तथा विमला कांडपाल पत्नी नायक प्रेम बल्लभ निवासी ग्राम सीमा, ताकुला के घर जाकर भौतिक सत्यापन किया गया। इस दौरान जिला सैनिक कल्याण एवं पर्नवास अधिकारी कर्नल विजय मनराल के साथ विभाग से हेमंत वर्मा भी मौजूद रहे।

 

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