EducationHealthCovid-19Job Alert
Uttarakhand | Tehri GarhwalRudraprayagPithoragarhPauri GarhwalHaridwarChampawatChamoliUdham Singh NagarUttarkashi
AccidentCrimeUttar PradeshHome

कल साल का आखिरी चंद्र ग्रहण; सूतक के समय क्या करें और क्या न करें?

01:27 PM Oct 27, 2023 IST | CNE DESK
Advertisement

नई दिल्ली | शनिवार, 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण है। इस पूर्णिमा की रात चंद्र की रोशनी में खीर बनाने और खाने की परंपरा है। इस बार रात में चंद्र ग्रहण रहेगा, इसका सूतक दोपहर से ही शुरू हो जाएगा, इस वजह से शरद पूर्णिमा की रात खीर कब बनाई जाए, इसको लेकर कन्फ्यूजन है। इस कन्फ्यजून को दूर करने के लिए हमने बद्रीनाथ, उज्जैन और वृंदावन के ज्योतिषियों और धर्म के जानकारों से बात की है।

Advertisement

बद्रीनाथ और उज्जैन सहित देश के कई शहरों में आज (शुक्रवार, 27 अक्टूबर) रात ही शरद पूर्णिमा उत्सव मनाया जाएगा। वहीं, वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में रविवार, 29 अक्टूबर की रात शरद पूर्णिमा की खीर बनाई जाएगी, लेकिन बांके बिहारी मंदिर में इस साल शरदोत्सव नहीं होगा।

Advertisement

timeanddate.com के मुताबिक 28 अक्टूबर की रात 1:05 बजे से आंशिक चंद्र ग्रहण की शुरुआत होगी। रात 1:44 बजे ग्रहण का मध्य रहेगा और 2:24 बजे ग्रहण खत्म हो जाएगा। ग्रहण का समय करीब 1 घंटा 19 मिनट रहेगा। 2023 के बाद अगला चंद्र ग्रहण 2024 में 17-18 सितंबर की रात होगा, जो भारत में दिखेगा। शरद पूर्णिमा पर ग्रहण होने से इसका सूतक दोपहर 4:05 से ही शुरू हो जाएगा।

कहां-कहां दिखेगा चंद्र ग्रहण ?

28 अक्टूबर की रात पूरे भारत में एक साथ चंद्र ग्रहण देखा जा सकेगा। भारत के साथ ही पूरे एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, नॉर्थ अमेरिका, पैसेफिक, हिन्द महासागर में दिखाई देगा।

Advertisement

शरद पूर्णिमा पर कौन-कौन से शुभ काम किए जाते हैं?

शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई परंपरा हैं, जैसे इस पर्व की रात श्रीकृष्ण की विशेष पूजा होती है, खीर बनाई जाती है, देवी लक्ष्मी का अभिषेक किया जाता है, विष्णु जी के ग्रंथ का पाठ और मंत्र किया जाता है, भगवान सत्यनारायण की कथा की जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और तीर्थ दर्शन करने की भी परंपरा है।

चंद्र ग्रहण के सूतक के समय क्या करें और क्या न करें ?

चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण शुरू होने से ठीक 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है और ग्रहण खत्म होने तक रहता है। इस समय में पूजा-पाठ, मंदिर दर्शन, विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, व्यापार प्रारंभ जैसे शुभ काम नहीं किए जाते हैं। इसी वजह से सूतक शुरू होते ही सभी मंदिर बंद कर दिए जाते हैं। ग्रहण खत्म होने के बाद मंदिर की शुद्धि होती है, इसके बाद भक्तों के लिए मंदिर खोले जाते हैं। सूतक काल में देवी देवताओं के मंत्रों का जप करना चाहिए। दान-पुण्य कर सकते हैं।

Advertisement

चंद्र ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं?

चंद्र ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं- पूर्ण, आंशिक और मांद्य। पूर्ण चंद्र ग्रहण में चंद्र लाल दिखने लगता है। आंशिक चंद्र ग्रहण में चंद्र का कुछ हिस्सा दिखना बंद हो जाता है। इन दोनों ग्रहण की धार्मिक मान्यता होती है और सूतक भी रहता है। मांद्य चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की हल्की सी छाया चंद्र पर पड़ती है, इसका धार्मिक महत्व नहीं होता है।

चंद्र ग्रहण कैसे होता है?

जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्र, ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन में आ जाते हैं और चंद्र पर पृथ्वी की छाया पड़ने लगती है, तब चंद्र ग्रहण होता है। इस संबंध में धार्मिक मान्यता ये है कि समय-समय पर राहु सूर्य और चंद्र को ग्रसता है, इस वजह से ग्रहण होते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात ग्रहण रहेगा तो इस पर्व से जुड़ी परंपराएं कब निभाएं?

उत्तराखंड के चार धाम में से एक बद्रीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल कहते हैं, ‘’शरद पूर्णिमा पर ग्रहण होने से इसका सूतक दोपहर 4:05 से ही शुरू हो जाएगा। शास्त्रों में सूतक के समय पूजा-पाठ करना, मंदिर में दर्शन करना, खाना बनाना और खाना मना किया गया है। इस वजह शरद पूर्णिमा से जुड़े शुभ काम 28 की दोपहर के बाद करना संभव नहीं है। इसलिए शरद पूर्णिमा से जुड़ी परंपराएं एक रात पहले यानी आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (27 अक्टूबर) की रात निभा सकते हैं। बद्रीनाथ धाम में भी शरद पूर्णिमा से जुड़ी पूजा-पाठ 27 तारीख को ही की जाएगी।’’

उज्जैन के ज्योतिषी और पंचांगकर्ता पं. आनंद शंकर व्यास कहते हैं, ‘’पूर्णिमा पर ग्रहण होने से रात में इस पर्व से जुड़ी पूजा-पाठ नहीं हो सकेंगे, न ही खीर नहीं बनाई जा सकेगी। 27 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि पर चंद्रमा की पूर्णिमा से सिर्फ एक कला कम रहेगी, इसलिए पूर्णिमा से एक रात पहले खीर बनानी चाहिए और भगवान को भोग लगाना चाहिए। हमारे यहां उज्जैन के बड़ा गणपति मंदिर में भी 27 अक्टूबर की रात शरद पूर्णिमा के आयोजन होंगे।’’

वृंदावन के चंद्रोदय मंदिर, इस्कॉन के पीआर श्याम किशोर दास ने बताया कि शरद पूर्णिमा पर ग्रहण होने से हमारे यहां एक दिन बाद यानी 29 अक्टूबर को इस पर्व से जुड़ी पूजा-पाठ की जाएगी।

शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा क्यों कहते हैं?

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस पर्व से जुड़ी कई मान्यता हैं। शरद पूर्णिमा को महारास की रात भी कहते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने इस रात में गोपियों के साथ महारास किया था। ऐसा भी माना जाता है कि इस पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी घूमने आती हैं और भक्तों से पूछती हैं, को जागृति यानी कौन जाग रहा है। इस मान्यता की वजह से से इस तिथि को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं।

शरद पूर्णिमा खीर क्यों बनाते हैं?

शरद पूर्णिमा का जिक्र धर्म ग्रंथों के साथ ही आयुर्वेद में भी है। इस रात में चंद्र की रोशनी खीर बनाने की परंपरा है। रात में खीर बनाई जाती है, भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर इस खीर का सेवन किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।

उज्जैन के डॉ. राम अरोरा (एमडी, आयुर्वेद) कहते हैं, ''शरद पूर्णिमा की रात चंद्र की किरणें औषधीय गुणों वाली होती हैं। जब ये किरणें खीर पर पड़ती हैं तो खीर में भी औषधीय गुण आ जाते हैं। ये खीर मौसमी बीमारियों से लड़ने की ताकत देती है। खीर में दूध, चावल, शकर, ड्रायफ्रूट्स डाले जाते हैं, ये सभी चीजें हमारी सेहत के लिए बहुत लाभदायक हैं।''

साभार - bhaskar.com

साल का आखिरी चंद्र ग्रहण, जानें भारत में कब और कितने बजे लगेगा?

Related News