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कार के ड्राइविंग लाइसेंस (DL) पर भी चला सकते हैं हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन - सुप्रीम कोर्ट

01:10 PM Nov 06, 2024 IST | CNE DESK
कार के ड्राइविंग लाइसेंस (DL) पर भी चला सकते हैं हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन - सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली | सड़क दुर्घटनाओं के लिए सिर्फ लाइट मोटर व्हीकल लाइसेंस धारको को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दुर्घटनाओं की दूसरी वजह भी है। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने निर्णय दिया कि LMV (लाइट मोटर व्हीकल) लाइसेंस धारक 7500 किलो से हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन भी चला सकते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने 2017 का फैसला बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2017 के अपने फैसले को बरकार रखा। जिसमें LMV लाइसेंस धारकों को 7500 किलोग्राम तक के परिवहन वाहनों को चलाने की अनुमति दी गई थी। यानी लाइट मोटर व्हीकल लाइसेंस धारकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। अब LMV लाइसेंस धारक 7500 किलोग्राम भार वाले ट्रांसपोर्ट वाहन चला सकेंगे। दुर्घटना होने पर बीमा कंपनियां क्लेम देने से मना नहीं कर सकेंगी।

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सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने इस कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया कि क्या लाइट मोटर व्हीकल (एलएमवी) लाइसेंस धारक चालक 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले कमर्शियल वाहन को चलाने का अधिकार है? इस मुद्दे पर सीजेआई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने 21 अगस्त को सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रखा था। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सड़क सुरक्षा विश्व स्तर पर एक गंभीर मसला है। भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण 2023 में 1.7 लाख लोगों की मौत हुई है। इस बाबत यह कहना कि ये सब हल्के वाहन चालकों के कारण हुआ ये निराधार है। इसके पीछे सीट बेल्ट नियमों का पालन न करना, मोबाइल का उपयोग, नशे में होना इत्याआदि जैसे बहुत से कारण हैं। वाहन चलाने के लिए विशेष स्किल्स की जरूरत होती है और सड़क की परिस्थितियों से निपटने के लिए ध्यान देने और ध्यान भटकाने से बचने की आवश्यकता होती है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत का ये फैसला हल्के वाहन चालको द्वारा बीमा दावा करने में भी मदद करेगा, जो 7500 किलोग्राम से कम वजन वाले वाहन चलाते है। लाइसेंसिंग व्यवस्था स्थिर नहीं रह सकती, हम आशा करते हैं कि मौजूदा खामियों को दूर करने के लिए सरकार द्वारा उपयुक्त संशोधन किए जाएंगे और अटॉर्नी जनरल ने आश्वासन दिया है कि ऐसा ही किया जाएगा।

यह फैसला बीमा कंपनियों के लिए झटका माना जा रहा है, जो हादसों में एक निश्चित वजन के ट्रांसपोर्ट व्हीकल के शामिल होने और ड्राइवरों के नियमों के मुताबिक उन्हें चलाने के लिए अधिकृत न होने पर क्लेम खारिज कर रही थीं। 18 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच ने इस कानूनी सवाल से जुड़ीं 76 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। प्रमुख याचिका बजाज अलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की तरफ से दाखिल की गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एनालिसिस

>> 7500 किलो से कम वजन वाले व्हीकल चलाने के लिए LMV लाइसेंस वाले ड्राइवर को मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 10(2)(ई) के तहत अलग से अथॉरिटी की जरूरत नहीं है।
>> लाइसेंसिंग के लिए, LMV और ट्रांसपोर्ट व्हीकल अलग कैटेगरी नहीं हैं। दोनों के बीच एक ओवरलैप है। हालांकि, स्पेशल परमिशन की जरूरत ई-कार्ट, ई-रिक्शा और खतरनाक सामान ले जाने वाले व्हीकल पर लागू होती रहेगी।
>> मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 3(1) का दूसरा हिस्सा, जो ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने के लिए स्पेशल अथॉरिटी की जरूरत पर जोर देता है, मोटर वाहन अधिनियम की धारा 2(21) में दी गई LMV की परिभाषा की जगह नहीं लेता है।
>> ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट और मोटर व्हीकल रूल्स में दिए गए मानदंड केवल उन लोगों पर लागू होंगे जो 7500 किलो से ज्यादा वजन वाले ट्रांसपोर्ट व्हीकल यानी माल वाहक, पैसेंजर व्हीकल, भारी माल वाहक और यात्री वाहन चलाना चाहते हैं।

2017 के एक मामले से उठा था सवाल

दरअसल यह सवाल तब उठा, जब 2017 में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने एक फैसला सुनाया था। तब कोर्ट ने कहा था- ऐसे ट्रांसपोर्ट व्हीकल, जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से ज्यादा नहीं है, उन्हें LMV यानी लाइट मोटर व्हीकल की परिभाषा से बाहर नहीं कर सकते हैं।

बीमा कंपनियों ने क्लेम ट्रिब्यूनल और अदालतों पर लगाया था आरोप

बीमा कम्पनियों का आरोप था कि मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) और अदालतें एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ी उनकी आपत्तियों की अनदेखी करते हुए उन्हें बीमा दावों का भुगतान करने के लिए आदेश पारित कर रही हैं। बीमा कम्पनियों ने कहा था कि बीमा दावा विवादों का फैसला करते समय अदालतें बीमाधारक के पक्ष में फैसला सुना रही हैं।

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