Lok Sabha Elections 2024: Dehradun पर इस 'दाग' की सीमा मतदाता राजनीति में सीमित है, सरकारें मतदान को बढ़ाती
Lok Sabha Elections 2024: स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे दून पर राजनीतिक संरक्षण से लगा मलिन बस्तियों का दाग शायद ही मिट पाएगा।
दून में राजनीति का केंद्र मलिन बस्तियों को राजनीतिक दल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं और मलिन बस्तीवासी भी मालिकाना हक की आस में राजनेताओं के जाल में फंस जाते हैं। हालाँकि, राजनीतिक दल और जन प्रतिनिधि भी नदियों और नालों के किनारे बड़े पैमाने पर बस्तियाँ बसाने में सहायक रहे हैं।
अभी तक सरकारों की ओर से न तो इनके विस्थापन की कोई योजना दिखी है और न ही इन्हें मालिकाना हक देने पर कोई ठोस निर्णय लिया गया है। इस बार भी लोकसभा चुनाव में दून की बस्तियां टिहरी और हरिद्वार सीट पर निर्णायक साबित हो सकती हैं।
अलग राज्य बनने के बाद दून में कुकुरमुत्तों की तरह झुग्गियां उगती गईं। देखते ही देखते बिंदाल-रिस्पना समेत दून की सभी नदियां-नाले झुग्गियों और कच्चे मकानों से पट गए। पिछले 23 वर्षों में देहरादून में 129 से अधिक मलिन बस्तियाँ आकार ले चुकी हैं, जिनमें 40 हजार से अधिक इमारतें हैं।
जबकि, दून की मलिन बस्तियों में इस समय एक लाख से अधिक मतदाता हैं। यह संख्या किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए काफी है। यही कारण है कि राज्य में चाहे कोई भी सरकार हो, मलिन बस्तियों को वोट बैंक में बदलने की पहल जारी रहती है। स्थानीय जन प्रतिनिधियों के संरक्षण में अवैध बस्तियां भी वैध हो गयीं और सरकारी जमीनें अतिक्रमण का शिकार हो गयीं.
वैध कॉलोनियों में भले ही पीने का पानी या बिजली की लाइनें उपलब्ध न हों, लेकिन राजनेताओं के दबाव में अवैध कॉलोनियों में सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। जब-जब नगर निगम या प्रशासन ने अवैध अतिक्रमण हटाने की कोशिश की, तब-तब जनप्रतिनिधि ढाल बनकर आगे खड़े रहे।
विडम्बना यह है कि न तो अवैध बस्तियाँ हटायी जा सकीं और न ही उन्हें नियमित किया जा सका। हालाँकि, सभी सरकारों ने झुग्गीवासियों को मालिकाना हक देने का आश्वासन दिया और चुनावों में उनका समर्थन मांगा। इस संबंध में तीन बार नियमितीकरण को लेकर अध्यादेश लाया जा चुका है, लेकिन अब भी स्थायी समाधान के आसार नजर नहीं आ रहे हैं.
नेता राजनीति करते रहे, बसागत बढ़ते रहे
दून की राजनीति मलिन बस्तियों पर केंद्रित होने के कारण यहां अवैध बस्तियां बढ़ती गईं और धीरे-धीरे नदी-नालों में हजारों अवैध निर्माण हो गए। वोटों की चाहत में सरकारें अवैध निर्माणों को ढहाने के बजाय उन्हें बचाने के तरीके ढूंढती रहीं। नेताओं की राजनीति के तहत अवैध बस्तियां बढ़ती गईं और शहर बदरंग हो गया।
सरकारी आंकड़ों में 129 मलिन बस्तियां
राज्य गठन से पहले दून नगर पालिका होने पर यहां 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। लेकिन, नगर निगम बनने के बाद वर्ष 2002 में इनकी संख्या बढ़कर 102 हो गयी और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 123 तक पहुंच गया. तब से बस्तियों को चिह्नित नहीं किया गया है. सरकारी अनुमान के मुताबिक, वर्तमान में दून में 129 बस्तियां और 40 हजार से ज्यादा घर हैं।
यहां दून की प्रमुख मलिन बस्तियां हैं
रेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, पारसोली वाला, बद्रीनाथ कॉलोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कॉलोनी, आर्यनगर, मद्रासी कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, श्रीदेव सुमननगर, संजय कॉलोनी. , ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खूवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कॉलोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बॉडीगार्ड, ब्राह्मणवाला और ब्रह्मवाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।
हजारों हेक्टेयर ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया, नदियाँ और नाले भी सिकुड़ गए
पिछले 23 सालों में दून में हजारों हेक्टेयर सरकारी जमीन पर कब्जा हो चुका है। निगम की करीब 7800 हेक्टेयर जमीन में से अब सिर्फ 240 हेक्टेयर जमीन बची है. माफिया निगम की जमीनों को लूटने में लगे हैं, लेकिन न तो सरकार की नींद टूट रही है और न ही निगम की. अवैध खरीद-फरोख्त के साथ-साथ सरकारी जमीनों पर कब्जे और धीरे-धीरे बस्तियों के रूप में निर्माण कर लूट की गई और सरकारें वोटों के लालच में मूकदर्शक बनी रहीं।