अल्मोड़ा: 'रोजगार एवं स्वरोजगार' की नई पहल होने लगी फलीभूत
✍️ सीडीओ आकांक्षा के निर्देशन में मनरेगा व टी—बोर्ड की पहल लाई रंग
✍️ रोजगार भी, चाय उत्पादन भी और भविष्य के लिए जगी नई आस
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: निकटवर्ती विकासखंड हवालबाग के देवलीखान में 'रोजगार एवं स्वरोजगार' का अभिनव प्रयास को अब पंख लगने लगे हैं। जिसके तहत नर्सरी विकास, पौध रोपण व बागान स्थापना की गतिविधियां चल रही हैं। मनरेगा एवं चाय विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में यह नई पहल सीडीओ आकांक्षा कोंडे के निर्देशन में चल रही है। जिसे अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं। इसमें वर्तमान में कई परिवारों के लोगों को रोजगार मिल रहा है, वहीं भविष्य में यही बागान आय को साधन बनेंगे।
मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोण्डे के नेतृत्व में टी—बोर्ड और मनरेगा के आपसी सामंजस्य से ग्राम पंचायत देवलीखान में ग्रामीणों के लिए रोजगार और स्वरोजगार के सुनहरा अवसर तैयार हो रहा है। सीडीओ ने त्वरित गति से इस अभिनव प्रयास को गति देने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि यह पहल अल्मोड़ा क्षेत्र में ग्रामीण पलायन की रोकथाम के साथ ही पर्यटन के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
01 हेक्टेयर से 08.35 हेक्टेयर तक पहुंची गतिविधियां
मालूम हो कि वर्ष 2020-21 में इस अभिनव कार्यक्रम की शुरुआत हुई। जिसके प्रथम चरण में एक हेक्टेयर भूमि पर 15,000 चाय पौधों का रोपण किया गया। इसके बाद इधर मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोण्डे के नेतृत्व में यह कार्यक्रम विस्तारित हुआ और वर्तमान में 8.35 हेक्टेयर भूमि में नर्सरी विकास, पौध रोपण और बागान रखरखाव एवं चाय विकास की गतिविधियां संचालित की जा रही हैं।
रोजगार सृजन में पहल रही सहायक
यह पहल क्षेत्र में रोजगार सृजन का माध्यम बनी है। आज तक इनमें 60 ग्रामीण परिवारों के लोगों को रोजगार मिला, जिनमें 80 फीसद से अधिक महिलाएं शामिल हैं। जिन्हें मनरेगा के माध्यम से 100 दिवसीय रोजगार और चाय विकास बोर्ड से 210 दिवसीय रोजगार प्रदान किया गया है। इस दौरान मनरेगा के तहत 15 लाख रुपये की लागत का कार्य पूरा किया गया है और इसमें 6414 मानव दिवसों का रोजगार सृजित हुआ है।
भविष्य में भूमि मालिक होंगे हकदार
चाय विकास बोर्ड वर्तमान में लगभग 1.25 क्विंटल ग्रीन टी व लीफ टी का उत्पादन कर रहा है, जिसकी बाजार कीमत 600-800 प्रति किलोग्राम है। इस पहल के 07 साल पूरे होने पर चाय विकास बोर्ड 7 से 15 वर्ष तक कुल उत्पादन मूल्य का 20 प्रतिशत भूमि मालिकों को प्रदान करेगा। 15 वर्षों के बाद भूमि मालिक स्वतंत्र रूप से चाय की पत्तियों का उत्पादन करेंगे और चाय विकास बोर्ड उनसे पत्तियां खरीदेगा। इधर, मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोण्डे ने इस सफलता के लिए संबंधित अधिकारियों व ग्रामीणों को बधाई दी है और कहा कि यह पहल अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रेरणादायी है और इसका मॉडल पूरे जनपद में लागू करने का कार्य किया जाएगा।