उत्तराखंड ने रचा इतिहास, विधानसभा में पास हुआ समान नागरिक संहिता (UCC) बिल
Uttarakhand Uniform Civil Code Bill | उत्तराखंड ने आज इतिहास रच दिया। विधानसभा में चर्चा के बाद आज समान नागरिक संहिता का बिल पास हो गया। दिनभर विधानसभा में बिल को लेकर चर्चा हुई वहीं, इसके बाद सीएम का संबोधन हुआ। शाम को यूसीसी बिल ध्वनिमत से पास कर दिया गया। इसके साथ ही उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। अब इस बिल को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। साथ ही आंदोलनकारियों के आरक्षण का बिल भी सर्वसम्मति से पास कर दिया गया।
इसके बाद सीएम धामी ने प्रेसवार्ता में कहा कि आज उत्तराखंड के लिए विशेष दिन है। मैं विधानसभा के सभी सदस्यों, जनता का आभार व्यक्त करता हूं। उनके समर्थन से ही हम आज ये कानून बना पाए हैं। मैं पीएम मोदी का भी धन्यवाद करना चाहता हूं। ये कानून समानता का है। ये कानून हम किसी के खिलाफ नहीं लाए, बल्कि उन माताओं बहनों का आत्मबल बढ़ाएगा, जो किसी प्रथा, कुरीति की वजह से प्रताड़ित होती थीं। हमने 12 फरवरी 2022 को इसका संकल्प लिया था। इसे जनता के सामने रखा था।
#WATCH | Dehradun: The Uniform Civil Code Uttarakhand 2024 Bill, introduced by Chief Minister Pushkar Singh Dhami-led state government, passed in the House.
CM Pushkar Singh Dhami says, "Today is a special day for Uttarakhand... The bill which had been long awaited, for which… pic.twitter.com/1qvAX6EXFO
— ANI (@ANI) February 7, 2024
सीएम धामी ने कहा कि करीब दो साल में आज सात फरवरी को हमने इसे सदन से पास करवाया। देश के अन्य राज्यों से भी हमारी अपेक्षा रहेगी कि वह इस दिशा में आगे बढ़ें। उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव के समय हमारी पार्टी ने संकल्प लिया था, इसे आगामी चुनाव के नजरिये से न देखा जाए। सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारियों का बड़ा योगदान है। आंदोलनकारियों की सुविधा, पेंशन बढ़ाने से लेकर हमने आरक्षण देने का काम किया है।
जाति, धर्म व पंथ के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ नहीं
विधेयक में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को ही शामिल किया गया है। इन विषयों, खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान बनाए गए हैं उनमें जाति, धर्म अथवा पंथ की परंपराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य
- विधेयक में 26 मार्च वर्ष 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण का प्रावधान।
- पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25 हजार रुपये का अर्थदंड का प्रावधान।
- पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।
- विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष तय की गई है।
- महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।
- हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त किया गया है। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।
- कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।
- एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
- पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
संपत्ति में बराबरी का अधिकार
- संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।
- जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।
- नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।
- गोद लिए, सरगोसी के द्वारा असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।
- किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।
- कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।
लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण कराना अनिवार्य
- लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।
- युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।
- लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।
- लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।
गोद लेने का कोई कानून नहीं
समान नागरिक संहिता में गोद लेने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है।
कई दशक बाद धरातल पर उतरा यूसीसी
- 1962 में जनसंघ ने हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही। इसके बाद जनसंघ ने 1967 के उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की वकालत की। 1971 में भी वादा दोहराया। हालांकि 1977 और 1980 में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई।
- 1980 में भाजपा का गठन हुआ। भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने। पार्टी ने 1984 में पहली बार चुनाव लड़ा, जिसमें केवल दो सीटें मिली।
- 1989 में 9वां लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा ने राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपने चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल किया। पार्टी की सीटों की संख्या बढ़कर 85 पहुंची।
- 1991 में देश में 10वां मध्यावधि चुनाव हुआ। इस बार भाजपा को और लाभ हुआ। उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 100 के पार हो गई। इन लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड, राम मंदिर, धारा 370 के मुद्दों को जमकर उठाया। ये सभी मुद्दे बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में शामिल थे, मगर संख्या बल के कारण ये पूरे नहीं हो पाए थे।
- इसके बाद 1996 में भाजपा ने 13 दिन के लिए सरकार बनाई। 1998 में पार्टी ने 13 महीने सरकार चलाई। 1999 में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बहुमत से सरकार बनाई। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।
- वर्ष 2014 में पहली बार भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और केंद्र में मोदी सरकार आई। मोदी सरकार ने पूरे जोर-शोर से अपने चुनावी वादों पर काम करना शुरू किया। अब केंद्र की सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में काम कर रही है। इसी कड़ी में यूसीसी को लागू कर उत्तराखंड, देश का पहला राज्य बनने की ओर अग्रसर है।
-उत्तराखंड में 2022 में भाजपा ने यूसीसी के मुद्दे को सर्वोपरि रखते हुए वादा किया था कि सरकार बनते ही इस पर काम किया जाएगा। धामी सरकार ने यूसीसी के लिए कमेटी का गठन किया। जिसने डेढ़ साल में यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया। अब विधानसभा का विशेष सत्र पांच फरवरी से शुरू होने जा रहा है, जिसमें पास होने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा।