बेहद प्रेरणादायी: दसवीं का छात्र 'अविघना दारुका' ने छोड़ी अनूठी छाप
✍️ असुविधाओं से घिरे पहाड़ के बच्चों को दिखाई नई राह
✍️ मुफ्त आनलाइन कोचिंग दी, 06 बच्चों को दिए टेबलेट
सीएनई रिपोर्टर, देहरादून: मौजूदा दौर में जहां एक ओर तमाम युवा मेहनत व लगन से बेहतर लक्ष्य साधने में जुटे हैं और कुछ नया कर गुजरने का ख्वाब संजोये हुए हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं है, जो बिना ज्यादा मेहनत किए अच्छी सैलरी वाली नौकरी की तलाश में हैं और दुनिया में क्या चल रहा है, उनका क्या दायित्व व लक्ष्य है, यह बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखती, बल्कि उनकी सोच महज आधुनिक सुख—सुविधाओं व मौज मस्ती की चाहत तक सीमित है। इनके बीच कुछ ऐसे लाल भी हैं, जो भीड़ से हटकर खुद को खास पहचान के साथ अलग रखते हैं। इसी एक अनूठा उदाहरण प्रकाश में आया है और वह है 'अविघना दारुका'। यह किसी स्थान का नाम नहीं है, बल्कि हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक बालक है। विलक्षण प्रतिभा के धनी इस छोटी उम्र के बालक ने पढ़ाई व रचनात्मक गतिविधियों में छाप छोड़ने के साथ ही सामाजिक सरोकार की, जो सोच उजागर की है, वह बेहद प्रशंसनीय और प्रेरणादायी है। उसकी सोच युवाओं में नई प्रेरणा का संचार करने वाली है।
जानिए, कौन हैं अविघना दारुका
दरअसल, देहरादून के नामी दून स्कूल में दसवीं कक्षा का छात्र है—अविघना दारुका। जो मूलतः बेगूसराय (बिहार) के निवासी हैं और एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता डॉ. विष्णु दारुका, वर्तमान में Oslo, Norway में कार्यरत हैं और माता बेला दारुका शिक्षिका हैं। वह सातवीं कक्षा से दून स्कूल में अध्ययनरत हैं। हर कक्षा में पढ़ाई में अव्वल रहने के साथ ही अविघना दारुका विद्यालय में भाषण, क्विज, पत्रिका लेखन, विज्ञान एवं गणित से जुड़ी प्रतियोगिताओं/गतिविधियों में अपनी खास छाप छोड़ते हैं। इसके अलावा कई प्रतियोगिताओं में वह विद्यालय का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। विद्यालय के शिक्षक उसे विलक्षण प्रतिभा का धनी बताते हैं।
पहाड़ से अनभिज्ञ, फिर भी दुख—दर्द समझा
कठिनाईयों व असुविधाओं से घिरे उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र से अनभिज्ञ होते हुए भी अपनी रुचि से उन्होंने पहाड़ की परिस्थिति को समझने का प्रयास किया और सुविधाओं के अभाव से घिरे कई बच्चों से जुड़े और पिछले करीब 03 सालों से कुछ बच्चों को आनलाइन कोचिंग देने में जुटे हैं। हर साल उनसे आनलाइन कोचिंग लेने वाले बच्चों की संख्या 30 के आसपास रही है और कोचिंग लेने वाले ये बच्चे सातवीं से नौंवी कक्षा तक के हैं।
छोटी उम्र में सामाजिक सरोकार की बड़ी सोच
छोटी उम्र में अविघना दारुका ने सामाजिक सरोकार की बड़ी सोच उजागर की है। उन्होंने पहाड़ी बच्चों के असुविधा के दर्द को समझकर उन्हें मुफ्त में कोचिंग देने का बीड़ा उठाया। वह अंग्रेजी, गणित व विज्ञान की आनलाइन कोचिंग दे रहे हैं। उनसे प्रभावित होकर इस आनलाइन शिक्षण में उनकी बहन आद्या दारुका ने भी सहयोग दिया है। आनलाइन कक्षा के अंतर्गत 06 बच्चों की सीखने की ललक व रुचि तथा पढ़ाई में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन से अविघना दारुका काफी प्रभावित हुए। तो उन्होंने इस बच्चों को सुविधा देने और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पुरस्कार स्वरुप टैबलेट देने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने अपने माता—पिता के सहयोग से 6 टैबलेट्स खरीदे। इनमें से 02 टैबलेट पौड़ी गढ़वाल के दो बच्चों के लिए डाइट पौड़ी गढ़वाल के प्राध्यापक डॉ. नारायण प्रसाद उनियाल के मार्फत भेजे जबकि 04 टेबलेट्स अल्मोड़ा जिले के बच्चों को दिए। अल्मोड़ा जिले में यह टेबलेट ग्राम डुंगरी—स्याल्दे की काव्या व दृष्टि रावत, ग्राम महरोली की कनिष्का बिष्ट तथा ग्राम सिंगोली—भिक्यासैंण के चिराग सती को दिए गए। अविघना का मानना है कि कैसी भी परिस्थितियां हो, लेकिन प्रतिभाएं सच्ची लगन, मेहनत व दृढ़ संकल्प से सफलता अर्जित कर ही लेती हैं।
ऐसे हुआ पहाड़ के बच्चों से जुड़ाव
बात कोविडकाल की है। जब लॉकडाउन के दौरान उनके विद्यालय द्वारा 'कनेक्टिंग टू द रूट्स' अभियान शुरु किया गया। जिसमें अविघना ने भी सातवीं कक्षा से ही जुड़ा। इस अभियान से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के काफी बच्चे भी जुड़े। जो दून स्कूल के गणित प्रवक्ता चन्दन घुघुत्याल के प्रयासों से जुड़े, क्योंकि चन्दन घुघुत्याल पहाड़ से हैं और यहां की परिस्थितियों से भली—भांति परिचित हैं। श्री घुघुत्याल से प्रेरणा ली और उन्होंने पहाड़ के बच्चों को आनलाइन कोचिंग देने की ठानी। इसमें उन्हें गणित शिक्षक का पूरा सहयोग मिला, तो अविघना पहाड़ के कुछ शिक्षकों के जरिये बच्चों से जुड़े। इन बच्चों के साथ आनलाइन आने के लिए उन्होंने स्थानीय शिक्षक की मदद से एक कंप्यूटर में जूम एप डाला और पढ़ाना शुरु किया। अविघना की इस सोच व प्रयास की कई शिक्षकों ने प्रशंसा की है और उम्मीद जताई है कि वह एक दिन अच्छा नागरिक बनकर उच्च मुकाम हासिल करेगा।