अल्मोड़ा : मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के 90 पद रिक्त, ऐसे कैसे सुधरेगी व्यवस्था !
📌 काम के बोझ और मानसिक दबाव में कार्मिक
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा। जनपद का शिक्षा विभाग मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। हालत यह है कि विभाग में मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के 90 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। जिस कारण एक मिनिस्ट्रीयल कर्मचारी के पास एक से अधिक पटलों का काम है। जिससे कर्मचारी जहां काम के बोझ से दब रहा है वहीं वह मानसिक दबाव में भी है।
पूरे जनपद में राजकीय हाईस्कूल, इंटर कालेजों में मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के 541 पद सृजित हैं। इसके सापेक्ष 90 पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। इनमें मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के 4, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के 3, प्रशासनिक अधिकारी के 19, प्रधान सहायक के 6, वरिष्ठ सहायक के 13 तथा कनिष्ठ सहायक के 45 पद रिकत हैं।
मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के पद रिक्त होने से सूचनाओं का आदान—प्रदान, डाक भेजने, सेवा पंजीकरण सहित कई कार्य प्रभावि हो रहे हैं। हाईस्कूल व इंटर बोर्ड के दौरान विभागों में काम का बोझ अधिक रहता है। वहीं कर्मचारियों की कमी के चलते कार्यों को समय पर निपटाना चुनौती बन जाता है।
एक कर्मचारी के पास अपने पटल के अलावा कई अन्य पटलों का काम होने से कर्मचारी काम के अधिक बोझ से जहां परेशान है, वहीं कई कर्मचारी अवसाद में रहने को मजबूर हैं।
वहीं इस संबंध में मुख्य शिक्षा अधिकारी अंबादत्त बलौदी का कहना है कि मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों के रिकत पदों की सूचना शिक्षा निदेशालय को समय—समय पर भेजी गई है। उन्होंने कहा कि रिकत पदों पर नियुक्ति शासन स्तर से ही संभव है।
शासन ने नहीं सुनी तो आंदोलन ही विकल्प : भैसोड़ा
इधर शिक्षा विभाग मिनिस्ट्रीयल आफिसर्स एसोसिएशन के नव निर्वाचित कुमाउं मंडल अध्यक्ष पुष्कर सिंह भैसोड़ा (Pushkar Singh Bhaisoda) का कहना है कि विभाग में पद रिक्त होने से एक—एक कर्मचारी को अन्य पटलों का काम भी देखना पड़ रहा है। जिससे कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ने से कर्मचारी परेशान ही नहीं बल्कि उनमें शासन के इस रवैये से तीखी नाराजगी भी है। उन्होंने कहा कि खाली पदों पर शीघ्र कर्मचारियों की नियुक्ति होनी चाहिए।
श्री भैसोड़ा ने बताया कि वे पूरे कुमाऊँ मंडल में भ्रमण कर मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की कमी व उनकी समस्याओं की जानकारी हासिल कर विभागीय अधिकारियों व निदेशालय स्तर पर समस्याओं के निराकरण की मांग करेंगे। यदि शासन स्तर पर समस्याओं के समाधान हेतु ठोस कदम नहीं उठाये गये तो फिर कर्मचारियों के पास आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं है।