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अल्मोड़ा: प्रेमचंद को विश्व साहित्य की धरोहर बताया

08:48 PM Jul 31, 2024 IST | CNE DESK
अल्मोड़ा  प्रेमचंद को विश्व साहित्य की धरोहर बताया
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✍️ सोबन सिंह जीना ​परिसर अल्मोड़ा में जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा के हिंदी विभाग और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में आज 'प्रेमचंद का कालजयी साहित्य' विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित हुई। गणित विभाग सभागार में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने प्रेमचंद के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए प्रेमचंद विश्व साहित्य की धरोहर बताया।

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संगोष्ठी का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट समेत कार्यक्रम संयोजक प्रो. जगत सिंह बिष्ट, परिसर निदेशक प्रो. प्रवीण सिंह बिष्ट, मुख्य वक्ता प्रो. देव सिंह पोखरिया व डॉ. तेजपाल सिंह आदि ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने कहा कि प्रेमचंद ने गरीबों व निर्धनों की आवाज को मुखर किया है। उन्होंने शोषित समाज की भयावह स्थितियों पर लेखन किया है। जिससे समाज की खाईयां कम हुई हैं। कुलपति ने कहा कि प्रेमचंद समाज को बांटना नहीं चाहते थे और मानवता के पक्षधर रहे हैं। कार्यक्रम संयोजक पूर्व कुलपति एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने प्रेम चंद के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद ने काल्पनिक धरातल से हटकर वास्तविक धरातल को देखा और समाज के वास्तविक रूप को प्रस्तुत किया। उन्होंने जो पीड़ा सहन की है, उसी को अपने साहित्य में लिखा है। वे हिंदी जगत के नहीं, वरन दुनिया की धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री विमर्श और सामाजिक जीवन का यथार्थ दिखाई पड़ता है।

मुख्य वक्तव्य देते हुए प्रो. देव सिंह पोखरिया ने प्रेमचंद के कृतित्व पर दृष्टि डालते हुए कहा कि 1900 के बाद हिंदी की अलग अलग विधाओं में जयशंकर प्रसाद, रामचंद्र शुक्ल और प्रेमचंद ने कार्य किया है। तीनों ही अपने—अपने समय के एक युग रहे हैं। प्रेमचंद के उपन्यासों में सामाजिक चिंतन दिखाई पड़ता है। उनके साहित्य में यथार्थमूलक आदर्शवाद था। वे भारतीय साहित्य के प्रतीक हैं। अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो. प्रवीण सिंह बिष्ट ने कहा कि प्रेमचंद ने आम आदमी के दुःख-दर्द को साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। तकनीकी सत्र में अतिथियों एवं शोधार्थियों ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में शोधपत्र पढ़े। समापन सत्र पर डॉ. ममता पंत ने आभार जताया।

इस मौके पर प्रेम चन्द के कृतित्व को लेकर चित्र प्रदर्शनी, प्रश्नोत्तरी, क्विज एवं वीडियो क्लिप द्वारा प्रेमचंद की रचनाओं का प्रदर्शन किया गया। संगोष्ठी में अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. शेखर जोशी, कुलानुशासक डॉ. नंदन सिंह बिष्ट, डॉ. गीता खोलिया, डॉ. माया गोला, डॉ. बचन लाल, डॉ. आशा शैली, डॉ. धनी आर्या, डॉ. बलवंत कुमार, प्रो. शालिमा तबस्सुम, प्रो. सोनू द्विवेदी, प्रो. मधुलता नयाल, डॉ. सबीहा नाज, डॉ. भुवन चन्द्र, डॉ. श्वेता चनियाल, डॉ. लता आर्या, डॉ. कालीचरण, डॉ. चंद्रप्रकाश फुलोरिया, डॉ. मनोज बिष्ट, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सदस्यों समेत विद्यार्थी, अन्य शिक्षक, कैडेट्स एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

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